तो इसलिए शादी करने से मना कर देते थे स्वामी विवेकानंद

 


संकलन: हरिप्रसाद राय

स्वामी विवेकानंद के पिता कलकत्ता के बड़े वकील थे। धन और ऐश्वर्य कमाने के साथ उन्होंने लेखकीय कार्य भी किया। पारिवारिक कलह पर आधारित उनका उपन्यास सुलोचना चर्चित भी हुआ, लेकिन उनके निधन के पश्चात परिवार का वैभव इस तरह बिखर गया, जैसे मुट्ठी से रेत बिखरती है। संपत्ति की वजह से हुए विवाद और मुकदमे के कारण विवेकानंद इतने टूट गए कि ईश्वरीय सत्ता पर प्रश्न करने लगे।

पिता के निधन के बाद आर्थिक तंगी तो आई ही, परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी भी विवेकानंद के कंधे पर एक साथ आई। एक तरफ परिवार की देखभाल, दूसरी तरफ वकालत की पढ़ाई, ऊपर से संपत्ति का विवाद। मुकदमे के खर्च का सवाल तो था ही। इन सबने आर्थिक तंगी के लिए खाद और पानी का काम किया। इससे उबरने के लिए उन्होंने नौकरी खोजी, लेकिन नहीं मिली। इससे उनकी परेशानी और बढ़ी। इसी समय उनकी शादी के प्रस्ताव भी आए। चूंकि सांसारिक भोग और विलासिता से उपर उठकर जीने की उनकी चेतना ने आकार लेना शुरू कर दिया था, इसलिए शादी के प्रस्ताव पर ‘ना’ ही करते रहे।

तभी आर्थिक संकट से बाहर निकालने वाला एक प्रस्ताव उनके सामने आया। एक धनवान महिला ने शादी की शर्त पर उनकी आर्थिक स्थिति को ठीक करने का प्रस्ताव विवेकानंद सामने रखा। प्रस्ताव आकर्षक था। इसे स्वीकार करने से उनकी कई समस्याएं आसानी से सुलझ सकती थीं। लेकिन यह प्रस्ताव दहेज का ही एक रूप था। विवेकानंद ने उस महिला के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया। मां भी उनके फैसले पर उनके साथ खड़ी रहीं। संकट के इस दौर में दृढ़ इच्छाशक्ति, संकल्प और मां की ममता उनके जीवन के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध हुई। अपने आचरण से उन्होंने यह संदेश दिया कि विपरीत परिस्थितियों में धैर्य धारण करते हुए लोभ से बचे रहना जीवन को ऊंचाइयों की ओर ले जाता है



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